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________________ 10 ज्ञानानन्द श्रावकाचार मिलती है। “चर्चा-संग्रह" के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि तत्वविचार तथा तत्व-चर्चा करना ही इनका मुख्य ध्येय था। डॉ. भारिल्ल के शब्दों में “पण्डित टोडरमल के अद्वितीय सहयोगी थे - साधर्मी भाई ब्र. रायमलजी', जिन्होंने अपना जीवन तत्वाभ्यास और तत्वप्रचार के लिए ही समर्पित कर दिया था। ___ “इन्द्रध्वज-विधान-महोत्सव-पत्रिका' की रचना माघ शुक्ल 10, वि.सं. 1821 में हुई थी। ब्र. पं. रायमल्लजी के शब्दों में" आगै माह सुदि .10 संवत् 1821 अठारा से इकबीस कै सालि इन्द्रध्वज पूजा का स्थापन हुआ। सो देस-देश के साधर्मी बुलावने कौ चीठी लिखी, ताकी नकल यहाँ लिखिये है।" ___ “चर्चा-संग्रह" में विविध धार्मिक प्रश्नोत्तरों का सुन्दर संग्रह किया गया है। इसकी एक हस्तलिखित प्रति वैद्य गम्भीरचन्द जैन को अलीगंज (एटा) के शास्त्र-भण्डार में वर्षों पूर्व मिली थी। इस प्रतिके लिपिकार श्री उजागरदास ने इसे वि.सं. 1854 में लिपिबद्ध किया था। उपलब्ध हस्तलिखित प्रतियों में यह सबसे प्राचीन प्रति है। अतः इसकी रचना वि.सं. 1850 के लगभग अनुमानित है। इस ग्रन्थ की रचना ग्यारह हजार दो सौ श्लोक प्रमाण है। इसमें अत्यन्त उपयोगी चुने हुए प्रश्नों के युक्तियुक्त संक्षिप्त उत्तर हैं। श्रावकाचार का रचनाकाल :- "ज्ञानानन्द श्रावकाचार' के अध्ययन से यह स्पष्ट हो जाता है कि लेखक को प्राकृत, संस्कृत आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। चारों अनुयोगों पर उनका समान अधिकार प्रतीत होता है। छन्द, अलंकार, व्याकरण आदि का ज्ञान हुए बिना वे इस शास्त्र की रचना नहीं कर सकते थे। ग्रन्थ के प्रारंभ में तथा अन्य स्थलों पर उन्होंने अपनी पद्य1. डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल : पण्डित टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्तृत्व, पृ. 66 से उद्धृत। 2. चर्चा संग्रह पन्थ क संख्या करी सुजान। 3. जैनपथ-प्रदर्शक, वर्ष 5, अंक 9, 1 सितम्बर, 1981, पृ. 2 से उद्धृत /
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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