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________________ 90 ज्ञानानन्द श्रावकाचार रात्रि में अग्नि के निमित्त से दूर-दूर से डांस-मच्छर, पतंगे, मक्खी , कसारी, चींटी, छिपकली, कनखजूरे कढाई में आ गिरते हैं तथा वह मिठाई पकवान तुरन्त ही तो बिक नहीं जाता है, बिकने के लिये भी पन्द्रह दिन, महिना, दो महिने पड़ा रह जाता है, उसमें अनेक लट आदि त्रस जीव पड कर चलने लगते हैं / अस्पर्श शूद्र को भी वह मिठाई बेचता है तब उसकी छुई झूठी-चखी हुई मिठाई भी वह अपने बर्तन में डाल लेता है। बहुत से हलवाई तो कलाल, खत्री आदि अन्य जाति के भी होते हैं, उनके दया का पालन कहां से पाया जा सकता है ? कुछ वैश्य कुल के भी हलवाई होते हैं, उन्हें भी उनके सदृश्य ही जानना / जल, अन्न से मिलाकर घी में तला होने पर भी वह उस (कच्ची ) रसोई के समान ही है। ___ संसारी जीवों को थोडा-बहुत अटक में रखने के लिये सखरीनिखरी ( सखरी अथवा कच्ची अर्थात जल्द खराब होजाने वाली जैसे चपाती, निखरी अथवा पक्की अर्थात अपेक्षाकृत देर से खराब होने वाली जैसे परांठा ) का प्रमाण बांधा है, वस्तु का विचार करने पर दोनों एक ही समान हैं / जैसे किसी ने जैन कुलीन होते हुये भी रात्रि में अन्न के भक्षण का त्यागी होने पर भी दूध, पेडा आदि का भक्षण करना रखा (नहीं छोडा)। यदि इतनी भी आज्ञा नहीं देते तो वह अन्न आदि सभी वस्तुओं का भक्षण करता, उससे खाये बिना तो रहा जाता नहीं / अतः अन्न की वस्तुयें छुडाकर, इतनी छूट देकर उसे मर्यादा में रखा है / अन्न का निमित्त तो गरीब से गरीब को भी सदैव मिलता है, पर दध, पेडे आदि का निमित्त तो किसी-किसी पुण्यवान को किसी-किसी काल में मिलता है / अत: रात्रि में बहुत बार तथा बहुत वस्तुओं के भोजन से बचाने के प्रयोजन से (ऐसी छूट रखी गई) जानना। ____ अतः जो बुद्धिमान ज्ञानी पुरुष हैं वे असंख्यात त्रस जीवों की हिंसा से उत्पन्न, अनेक त्रस जीवों की राशि, महाअक्रिया सहित मांस भक्षण के
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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