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________________ 88 ज्ञानानन्द श्रावकाचार तो विधि पूर्वक दान देने के बाद ही भोजन करते हैं / इसप्रकार दया सहित राग भाव रहित भोजन की विधि कही। भोजन कर लेने के बाद उस रसोई में कुत्ते, बिल्ली, हड्डी-चमडा, मल-मूत्र से लिप्त वस्त्र वाला तथा शूद्र आ जावे अथवा विशेष झूठन पडी रह गयी हो तो सुबह भोजन बनाने से पहले नित्य चूल्हे (अंगीठी) की सारी राख निकाल दे / निगाह से जीव-जन्तु देखकर कोमल झाडू से झाड कर चौका लगावे / पहले कहीं हँड्डी-चमडे आदि का संसर्ग न हुआ हो तो नित्य चौका न लगावें। चौका लगाये बिना ही राख निकाल कर दूर करदें एवं यत्न पूर्वक झाडू लगाकर (दूसरे समय का) भोजन बनालें / बिना प्रयोजन चौका लगाना उचित नहीं है / चौका लगाने से जीव की हिंसा विशेष होती है। ___ अशुद्ध स्थान पर रसोई करने (बनाने तथा खाने) पर चौका लगाने की हिंसा की अपेक्षा तो अक्रिया के निमित्त से राग-भाव का विशेष पाप होता है / इसलिये जिसमें थोडा पाप लगे वह कार्य करना / धर्म दयामय है यह जानना / धर्म के बिना क्रिया कार्यकारी नहीं है / ___ कुछ दुर्बुद्धि पुरुष अनाज तथा लकडी तक को धोते हैं, वह तो लाचारी है / वे तवे, बर्तन, आदि का पेंदा (निचली तरफ का भाग) धोकर दर्पण के समान उज्जवल रखते हैं, तथा बहुत मात्रा में पानी से नहाते अथवा चौका देते हैं, स्त्री के हाथ की रसोई (भोजन) नहीं खाते हैं, बहुत प्रकार की सब्जियाँ, मेवे एवं मिष्ठान्न, दूध-दही, हरितकाय सहित संवार-संवार कर भोजन बनाते हैं / फिर प्रसन्न होकर दो चार बार लूंसढूंस कर तिर्यंचों की भांति पेट भरते हैं, तथा यह कहते हैं कि हम बडे क्रियावान हैं, बडे संयमी हैं / ऐसा झूठा दंभ करके धर्म का आश्रय लेकर भोले जीवों को ठगते हैं। जिनधर्म में तो जहां निश्चित रूप से एक रागादि भावों को छुडाया है तथा इसही के लिये हिंसा छुडाई है / अतः पाप रहित हो तथा जहां
SR No.032848
Book TitleGyananand Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaimalla Bramhachari
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2010
Total Pages330
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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