SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान = == = = = = = = = = अथ प्रत्येकार्घ - दोहा विजयमेरु ईशान दिश, जम्बूवृक्ष महान। पूरव शाखा जिन भवन, अर्घ जजों तज मान॥११॥ ___ ॐ ह्रीं विजयमेरुके उत्तर दिश ईशान कोण सम्बन्धी जम्बूवृक्ष की पूर्व शाखा पर संस्थित सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // विजयमेरु नैऋत्य दिश, शालमली तुम जान। पूरव शाखा जिनभवन, अर्घ जजों तज मान॥१२॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके दक्षिण दिश नैऋत्यकौण सम्बन्धी शाल्मली वृक्षकी पूर्व शाखा पर संस्थित सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ अर्घ // अथ जयमाला-दोहा विजयमेरु उत्तर दिशा, ताके कौण ईशान। दक्षिण नैऋत्य कोण है, भूप वृक्ष दोय जान॥१३॥ जम्बू शालमली तनी, शाखा अधिक विशाल। तिनपर जिनमंदिर जजों अब सुनिये जयमाल॥१४॥ चाल छन्द विजय मेरु उत्तर दिशा जगसार हो, शौभै कोन ईशान। दूजी दक्षिण दिश गिनों, जनसार हो नैऋत्यकौण सुजान॥ जान उत्तर गिन सु दक्षिण दोय वृक्ष सुहावने। जम्बू सु सालमली मनोहर, मन हरण मन भावने॥ ताकी जु शाखा चार, चहूँ दिश फूल फल पल्लव घने। नही खिरत काल अनादि सेती काय पृथ्वी सोहने। पूरव शाखा पर कहै जग सार हो जिन मंदिर सु विशाल। सो हैं सरस सुहावने, जग सार हो लागे रतन सुलाल॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy