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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [81 === ====aggage मेरु विजयते जान दिशा वायव्य तहां लहिये। मालवान गजदंत नाम अति सुन्दर कहिये। तहां जिनमंदिर बने बिंब जिनराज बिरा। पूजत अर्घ चढाय परम आनन्द उर छा // 13 // ____ॐ ह्रीं विजयमेरुके वायव्य दिश मालवान नाम गजदन्त पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // मेरु विजय ते जान दिशा ईशान जो सोहै। धरै सुगन्ध अपार गन्ध मादन मन मोहै। है गजदंत सु नाम तासपर मंदिर जानो। पूजत अर्घ चढ़ाय परम आनन्द उर जानो॥१४॥ __ ॐ ह्रीं विजयमेरुके ईशानदिश गंधमादन नाम गजदन्त पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ अथ जयमाला-दोहा विजय मेरुतै लीजिये, विदिशा चार विशाल। गजदंतनपर जिन भवन, सुन तिनकी जयमाल॥१५॥ पद्धडी छन्द जै द्वीप धातुकी है उदार, ताकी पूरव दिश मेरु सार। जै विजय नाम गिरको सुजान, ताकी चारों विदिशा महान॥ गजदंत चार सुन्दर स. ाय, गिर निषध नीलसों लगे जाय। वन भद्रशालमें स्वयं सिद्ध श्री जिनवाणी भाषो प्रसिद्ध॥ तापर सो है जिनभवन सार, वरनत सुर गुरु नहि लहत पार। सब उपमा समवशरण बनाय,सिंहासन द्युति वरणी न जाय॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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