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________________ 74] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान នផ================= विजय मेरु तै जानिये, दक्षिण दिश सुखदाय। भद्रशाल बन जिनभवन, पूजत मन हरषाय॥१२॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी दक्षिणदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ विजयमेरु तै लिजिये, पश्चिम दिशा अनूप। भद्रशाल वन जिनभवन, पूजत सुर खग भूप॥१३॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके ,भद्रशाल वन सम्बन्धी पश्चिमदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ विजयमेरु उत्तर दिशा, जिनमंदिर सुखकार। भद्रशाल वनके विषे जजों हरष उर धार // 14 // ॐ ह्रीं विजय मेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो।४॥ अर्घ॥ मदअवलिप्तकपोल छन्द विजयमेरुकी पूरव दिशमें, नन्दनवन सोहे सुविशाल। तहां जिनभवन अनूप शोभित, सुरगुण पूजत हैं त्रिकाल॥ अष्टद्रव्य ले पूजा करकर, नाचत थेई थेई देते ताल। जे नर आवत अर्घ चढावत, शिवसुन्दर पावत सुखमाल॥ ____ॐ ह्रीं विजयमेरु नन्दनवन सम्बन्धी पूर्वदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ विजयमेरुकी दक्षिण दिशमें, नन्दनवन शोभे सुखकार। तहां जिनभवन अकीर्तम सो हैं सुरगण मोहित रुप निहार॥ केई गावै केहै ताल बजावै, नाचत उर धर हरष अपार। अर्घ चढावत पुण्य बढावत, गावत जिनगुण शिव सुखकार॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके नन्दनवन सम्बन्धी दक्षिणदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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