SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 72] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ___ॐ ह्रीं धातुकी द्वीपमध्ये पूर्व दिश विजयमेरु सम्बन्धी चारों दिश चार वन संस्थित षोडश जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं। स्थापनं। अथाष्टकं-चाल जै क्षीरोदध उज्जल जल लीजै, सु गुण हम ध्यावै। जै श्री जिन सन्मुख धार सु दीजै सो गुण हम ध्यावै॥ जै विजयमेरु चारों दिश सोहै, सो गुण हम ध्यावै। जै षोड़स जिनमंदिर मन मोहै, सुगुण हम ध्यावै॥ जै देख जिनेश्वर कैसे राजै सुगुण हम ध्यावै। जै पूजत जिनको सब दुख भाजै, सुगुण हम ध्यावै॥ __ॐ ह्रीं धातुकी द्वीपके पूरवदिश विजयमेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी पूर्व // 1 // दक्षिण // 2 // पश्चिम॥३॥ उत्तर // 4 // नंदनवन संबन्धी पूर्व // 5 // दक्षिण॥६॥ पश्चिम // 7 // उत्तर // 8 // सोमनस वन सम्बन्धी पूर्व॥९॥ दक्षिण॥१०॥ पश्चिम॥११॥ उत्तर॥१२॥ पांडक वन सम्बन्धी पूर्व // 13 // दक्षिण॥१४॥ पश्चिम // 15 // उत्तर दिश॥१६॥ सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो जलं। जै केसर अर करपूर मिले कै, सुगुण हम ध्यावै। जै पूजत जिनवर चंदन लेकै, सो गुण हम ध्यावै॥ जै विजय.॥३॥ ॐ ह्रीं. // चंदनं॥ जै मुक्ताफल सम अक्षत लीजै, सो गुण हम ध्यावै। जै श्री जिन सन्मुख पुञ्ज सु दीजै, सो गुण हम ध्यावै॥ जै विजय. / / 4 // ॐ ह्रीं.॥ अक्षतं॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy