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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [69 मेरु सुदर्शन भद्रशाल वन सीतोदा दोनों तट मान। पांच पांच हैं कुण्ड मनोहर तिह तट दस दस गिर परमान॥ तिस कंचनगिर पर जिनप्रतिमा एक एक सब पर सम मान। सब मिल एकशतक नितप्रति हमजजतअर्घतजके अभिमान॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके भद्रशाल बन सम्बन्धी सीतोदा नदीके दोनों तट पांच पांच कुंड तिस एक एक कुन्ड तट दस दस कंचनगिर तीन कंचनगिर पर एक एक जिनप्रतिमा अकीर्तम गन्धकुटीसहित विराजमान ते सौ प्रतिमाको॥८॥ अर्घ // मेरु सुदर्शन चारों दिशके षोडश भवन कहे सुख मान। षोडस गिर वक्षार मनोहर चौतिस विजयारध गिर मान॥ हस्तिदंत चार षट कुलगिर दो इक इक द्रुमके परिमान। आठ अधिक सत्तर जिनमंदिर जजों अर्घ तजके अभिमान॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके चारों दिश सम्बन्धी अठत्तर जिनमंदिर सिद्धकूट तिनको॥९॥ अर्घ // मेरु सुदर्शनकी आठों दिश लवण उदध लकहै मरजाद। ताके मध्य क्षेत्र बहु वरणे तहां जिनमंदिर साद अनाद॥ सिद्ध भूम तहां कही अनन्ती सुर खग जजत करत अहलाद। मनवचतन हमशीश नायकर जजत अघ तजके परमाद। ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके दिशा विदिशा मध्ये लवण समुद्र तकुम जहां जहां कीर्तन अकीर्तम जिनमंदिर होय सिद्धभूमि होय तहां तहां // 10 // अर्घ // अथ जयमाला - दोहा षटकुल गिरपर जिनभवन, शोभित परम विशाल। तिन प्रति सीस नवायकै, अब वरणूं जयमाल // 21 //
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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