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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [57 जहां खेचर खेचरनी सुआय, बहुभक्ति सहित उत्सव कराय। जै जै जै श्री जिनराज देव, सुरनर विद्याधर करत सेव॥ घत्ता-दोहा-पश्चिम दिशा सु मेरुकी, षोडश क्षेत्र विदेह। तहां षोडश बैताड़ गिर, तिनपर श्रीजिनगेह॥३८॥ जहां जिनबिंब अनादि हैं, अद्भूत परम विशाल। तिनपद शीश निवायकै, लाल रची जयमाल॥३९॥ इति जयमाला। अथाशीर्वाद - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताको पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढ़ अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री सुदर्शनमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी षोडश रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ सुदर्शनमेरुके दक्षिण दिश भरतक्षेत्र संबन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 9 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द मेरु सुदर्शन दक्षिण दिशमें, भरतक्षेत्र शोभे सु विशाल। बीस चार जिनवर तहां निवसै,सुरनर खग सेवै तिहुंकाल॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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