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________________ [45 श्री तेरहद्वीप पूजा विधान oranwroarinarararararararawwarerare अथ सुदर्शनमेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी षोडश रुपाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 7 अथ स्थापना-मद अवलिप्तकपोल छन्द मेरु सुदर्शन पूरव दिशमें, कहे विदेह सु षोडश जान। तहां षोडश बैताड़ मनोहर, तिनपर श्रीजिन भवन बखान। सुर विद्याधर पूजन आवै, गावै गुण मन हरष सु आन। हम पूजत आह्वानन करके, अपने घरमें आनंद मान॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरवविदेह सम्बन्धी षोडश रूपाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिन मंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठर ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणं / स्थापनं। अथाष्टकं-चाल छन्द क्षीरोदध उज्जल नीर, सुरगण लावत हैं। पूजे श्री जिनपद धीर, पुन्य बढावत है॥१॥ हे मेरु सुदर्शन नाम, पूरव दिश सो है। रूपाचल पर जिन धाम, षोडश मन मोहैं // 2 // ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पूरव विदेह सम्बन्धी कक्षा // 1 // सुकक्षा // 2 // महाकक्षा // 3 // कक्षावती // 4 // अवर्ता॥५॥ मंगलावती // 6 // पुष्कला ॥७॥पुष्कलावती॥८॥वक्षा ॥९॥सुवक्षा॥१०॥महावक्षा॥११॥ वत्सकावती॥१२॥ रम्या॥१३॥ सुरम्या॥१४॥ रमणी॥१५॥ मंगलावतीदेश सस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥जलं॥ मलयागिर चन्दन लाय, केशर रंग भरी। पूजों श्री जिनवर पाय, आनन्दकी सु धरी॥ हे मेरु सु.॥३॥ ॐ ह्री. चंदनं / /
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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