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________________ डा [3] किया है। इधर श्रावक बनारसीदास जहानाबादसे सकुराबाद आ बसे, जहां गुलाबराय नामक पद्मावती पुरवाल जैनी रहते थे, उनके पांच पुत्र थे जिनमें एकका नाम लालजी था। सबसुखरायका लालजीसे बहुत स्नेह हो गया। फिर एक वार सबसुखरायने जिन मंदिरमें जाकर 'समवशरण' का चित्रपट देखा, और लालजीसे कहा कि समवशरण पूजापाठ बन जाय तो कितना अच्छा हो, तो लालजीने यह रचना करनेका उन्हें वचन दिया बादमें वहीं सकुराबादमें श्री कन्हरदासजी श्रावक रहते थे, उनके दो पुत्रोमेंसे एकका नाम भी 'लालजी' था और हमारे कवि लालजीसे इन लालजीका बहुत स्नेह था। तो एकबार इन्होंने लालजी कविको सबसुखरायके वचनकी याद दिलाई व प्रेरणा की तो उन्होंने समवशरण पाठकी रचना की जो सं. 1834 में माघ वदी अष्टमीको आपने समाप्त की थी। फिर 50 वर्ष बाद श्री लालजी कविराजने श्री तेरहद्वीप पूजा पाठ विधानको रचना भेलूपुर, काशीमें रहकर बडी भारी विद्वताके साथ की, जो सं. 1877 कार्तिक सुदी 12 शुक्रवारको समाप्त हुई व हस्तलिखित थी। कवि श्री लालजी छन्द शास्त्रके बडे भारी विद्वान् थे इससे ही पूजापाठ विधानको आपने एक नहीं लेकिन अनेक छन्दोंमें बनाया है जिसे पढ़कर ही आपकी छन्द शास्त्रकी विद्वताका पता लग जाता है। इस विधानमें श्री तेरहद्वीप 458 जिनालयोंकी कुछ 62 पूजायें अनेक छन्दोंमें ऐसी उत्तम रीतिसे रची गई हैं, कि यह पूजन ग्रन्थ तो क्या एक स्वाध्याय ग्रन्थ भी बन गया है। अतः
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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