SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [325 2222222222222 धूप दस गन्ध ले अग्नि बिच खेईये। हरत वसु कर्म भविजन चरन सेईये // रूचिकगिर. // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं // फल वो उत्कृष्ट मीठे, सु रस लाइये। तुरत शिव रमनी वर, मोक्ष फल पाइये॥ रूचिकगिर. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल सु फल आठ विध, दर्व सब धोयके। पूज जिनराज पद, लाल मद खोयके // रूचिकगिर. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्घ॥ अथ प्रत्येकार्घ-सोरठा पूरव दिशा निहार रुचिक नाम गिर शीस पै। / जिनमंदिर सुखकार, पूजो आठों दर्व ले // 11 // ॐ ह्रीं रूचिक द्वीपके पूरव दिश रूचिकगिर पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // दक्षिण दिशा सु जान, सैल रुचिकगिरकी कही। जिनमंदिर धर ध्यान, पूजो मन वच कायसे॥१२॥ ॐ ह्रीं रूचिक द्वीपके दक्षिण दिश रूचिकगिर पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ पश्चिम दिश मन लाय, रूचिक सु गिरपर देखिये। जिनमंदिरमें जाय, श्री जिनवर पद पूजकै // 13 // ॐ ह्रीं रूचिक द्वीपके पश्चिम दिश रूचिकगिर पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ //
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy