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________________ 24] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान 188488888888888888 सोरठा मेरु सुदर्शन सार ताकी पूरव दिश विषै। वन सोमनस निहार, जिनगृह पूजों अरघसो॥२१॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके सोमनस वन सम्बन्धी पूरवदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ॥ दक्षिण दिशा सुजान, मेरुसुदर्शनकी गिनो। वन सोमनस प्रमान, श्री जिनमंदिर पूजिये॥२२॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके सोमनस वन सम्बन्धी दक्षिणदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ॥ पश्चिम दिश सुखकार, मेरुसुदर्शनकी सही। जजो सुजिन अगार, वन सोमनस विषै सदा॥२३॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके सोमनस वन सम्बन्धी पश्चिमदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ॥ उत्तरदिशा जु सार, मेरुसुदर्शन ते कही। जिनपद जजों निहार, मंदिर वन सोमनस मैं॥२४॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके सोमनस वन सम्बन्धी उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ॥ चाल छन्द पांडुकवन शोभ सार, महिमा को वरनैं, गिरमेरु सु पूर द्वार, पाप तिमिर हरने। तामैं जिनमंदिर सार, शोभित सुखकारी, मन वच तन अरघ संवार, जिनपद तल धारी॥२५॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पांडुक वन सम्बन्धी पूरवदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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