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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [315 = == = = == = === == == == == रमणी वापी मुख कोनजाास,रतिकरगिर शिखरप्रथम प्रकाश। जिनमंदिर सुर पूजत सुजाय, हम जजत सुजिनपद शीशनाय॥ ____ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश रमणी वापी मुखकोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो।६॥ अर्घ॥ रमणी वापी विदिशा विचार, रतिकर गिर दूजो शिखर धार। जिनमंदिरसुर पूजत सुजाय, हम जजत सुजिनपद शीशनाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश रमणी वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ // वापी सुप्रभा बीच है अनूप, दधिमुख गिरस्वेत वरन स्वरूप। जिनमंदिर सुरपूजत सुजाय, हम जजत सुजिनपद शीशनाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश सुप्रभा वापीबीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ॥ वापी सुप्रभाविदिशा सुआदि, रतिकर गिरिशिखर बनो आदि। जिनमंदिरसुर पूजतसु जाय, हम जजत सुजिनपद शीशनाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश सुप्रभावापी मुखकोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 9 // अर्घ // वापी सुप्रभा मुख कोण देख, दूजे रतिकर गिरिपर सुलेख। जिनमंदिर सुरपूजत सुजाय, हम जजतसु जिनपदशीशनाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश सुप्रभा वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ // सर्वतोभद्र वापी सुजान, तिस बीचसु दधिमुख शिखर आन। जिनमंदिर सुरपूजत सुजाय, हम जजज सुजिनपद शीशनाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश सर्वतोभद्र वापीबीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 11 // अर्घ //
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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