________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [305 ~ ~~ ~~~ ~ ~~~ ~~ ~~ ~~~ ~~~ वापी वीत शोका बीच सोय, दधिमुख पर जिनमंदिर होय। सुर सुरपति नित जजत सुजाय, हमनिजधर पूजत जिनपाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश बीतशोका वापी बीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ // वीत सु शोका कोण गनेह, पहले रतिकर पर जिन गेह। सुर सुरपति नितजजत सुजाय, हमनिजधर पूजत जिनपाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश वीतशोका वापी मुखकोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ॥ कोण वीत शोकाको पेख दूजे रतिकर जिन गृह देख। सुर सुरपति नितजजत सुजाय, हमनिजधर पूजत जिनपाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश वीतशोका वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ // जयमाला-दोहा नंदीश्वर दक्षिण दिशा, तेरह भवन रिशाल। जिनपद शीस नवायक, सरस भनी जयमाल॥२४॥ पद्धडी छन्द जै नन्दीश्वर द्वीप सार, जै ताकी दक्षिण दिश निहार। इकअंजनगिरिदधिमुखसुचार,रतिकरगिरआठकहेविचार॥ जै यही तेरह गिर प्रसिद्ध, तापर जिनमंदिर स्वयं सिद्ध। जै सौ जौजन आयाम जान, जै व्यास तास आधो प्रमान॥ जै पचहत्तर जोजन उत्तंग, मणिजड़ित वरन कंचन सुरंग। जै चारों दिश सोहै जु द्वार, जै मानस थंभ तहां निहार॥ जै प्रातिहार्य वरनन विचित्र, जै मंगल दर्व धरै पवित्र। शत आठ अधिक प्रतिमा विशाल, जै जुदे२ दरौं त्रिकाल॥