SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [297 PrararareNareerNaarararararwarera मलयागिर शीतल ले, चंदन तामें के सर डारी। भव आताप निवारन कारन, श्री जिन पगतल धारी॥ ___ नन्दीश्वर. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं // उज्वल ते उज्वल अक्षत ले, पुंज मनोहर दीजे। भाव भक्तिसों पूजा करकै, निज भव अनुरस पीजे॥ नन्दीश्वर. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ कमल केतकी बेल चमेली, श्री गुलाब ले प्यारो। श्रीजिनचरण चढ़ाय गाय गुण, हे प्रभु अब मोहि तारो॥ नन्दीश्वर. // 5 // ॐ ह्री. // पुष्पं // फेनी खाजा, तुरत सु ताजा, नैननको सुखदाई। क्षुधा रोगके दूर करनको, श्री जिनचरण चढ़ाई॥ नन्दीश्वर. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं // मणिमई दीप अमोलक लेकर, रतन रकाबी धरिये। जगमग जगमग होत दिवाली, मोह तिमिरको हरिये॥ नन्दीश्वर. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं // कृश्नागर वर धूप दशांगी, प्रभु आगे धर खेवो। अष्ट कर्मके नाश करनको, श्री जिनवर पद सेवो॥ नन्दीश्वर. // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं // श्रीफल लौंग छुहारे, पिस्ता, किशमिश दाख मिलावो। श्रीजिन चरण चढ़ावत भविजन, मनवांछित फल पावो॥ नन्दीश्वर. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल आठों दर्व मिलाकर, अर्घ बनावत भाई। जिन गुण गावत ताल बजावत, पूजत श्री जिन राई॥ नन्दीश्वर. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्घ
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy