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________________ 284] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ==================== अथ पुष्करार्ध द्वीपमध्ये मंदिर विद्युन्माली मेरुके दक्षिण दिश दोनों भरत क्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 54 अथ स्थापना-कुण्डलिया छन्द मंदिर विद्युन्मेरु के, दक्षिण दिश सुखकार / भरतक्षेत्र दोय बीचमें सोहै इक्ष्वाकार // सोहै इक्ष्वाकार शिखर जिनभवन बिराजै / पंच वरन मणि जडित, देख द्युति रवि शशि लाजै॥ रतनमई जिनबिंब नमत खग अमर पुरन्दर / आह्वानन विध करत जजत हम श्रीजिनमंदिर॥ ॐ ह्रीं पुष्करार्ध द्वीपमध्ये मंदिर विद्युन्माली मेरुके दक्षिण दिश दोनों भरतक्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् स्थापनम्। अथाष्टकं-चाल छन्द क्षीरोदधि सम उज्वल नीर, पूजो जिनवर गुण गम्भीर। परम सुख हो, देखे दरश महासुख हो॥ इक्ष्वाकार शिखर जिन धाम, जिनप्रतिमाजीको करुं प्रणाम। ___ महासुख हो, देखे दरश महासुख हो॥२॥ ॐ ह्रीं पुष्करार्ध द्वीपमध्ये मंदिर विद्युन्माली मेरुके दक्षिण दिश दोनों भरतक्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ जलं॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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