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________________ 20] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान अथ सुदर्शन मेरु पूजा अथ स्थापना - पद्धडी छन्द प्रथम सुदर्शन मेरु सुजानो, भद्रशाल वन प्रथम प्रधाना। नंदनवन सोमनस वखानो, चौथो पांडुकवन मन माना॥१॥ चैत्यालै सोलह सुः कारी, चारों वन चहुँदिश मन हारी। सुरनर खग मिलपूजन आवे,सो शोभा हम किही मुखगावै॥ आह्वाननको तिनकोहमकीनो, मनवचतन निजभावनवीनो। तिष्ठ२ संवौषट कहिये, जिनपद पूज अभयपद लहिये। ॐ ह्रीं श्रीसुदर्शन मेरुके चार बन चारों दिश षोडश जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अब मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम् स्थापनं। अथाष्टकं-मद अवलिप्त कपोल छन्द पद्म द्रहको नीरसु लेकर रतन कटोरी मांहि धरो, श्रीजिन चरण चढावत भविजन जन्म जरा दुख दूर करो। चैत्याले सोलह सुखकारी मेरु सुदर्शन तने सुजान, तिनको पूजत सुरनरखग मिल,परम भगत उर अंतरआन॥४॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी॥पूर्व // 1 // दक्षिण॥२॥ पश्चिम॥३॥ उत्तर॥४॥ नंदनवन संबंधी पूर्व // 5 // दक्षिण // 6 // पश्चिम // 7 // उत्तर // 8 // सोमनस वन संबंधी पूर्व // 9 // दक्षिण // 10 // पश्चिम // 11 // उत्तर // 12 // पांडुकवन सम्बन्धी पूर्व // 13 // दक्षिण // 14 // पश्चिम // 15 // उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 16 // जलं॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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