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________________ 276 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान MINIPIDURIAIPIRIPIRIPIRIPIRIPIRIPIPIRINJ __ अथ प्रत्येकाघ-अडिल्ल विद्युगिरि उत्तर ऐरावत क्षेत्र है, रूपाचलपर कूट सुनव छवि देत है, सिद्धकूट तिन बीच सु जिनमंदिर जहां, पूजो भविक त्रिकाल अर्घ वसुविध तहां // 11 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके उत्तर दिश ऐरावत क्षेत्र संबंधी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ अथ जयमाला-दोहा विद्युतगिरि उत्तर दिशा, ऐरावत सु विशाल। विजयारधपर जिनभवन, सुन तिनकी जयमाल // 12 // पद्धडी छन्द जै विद्युन्माली मेरु सार, शोभा वरनत पावै न पार। जै ताकी उत्तर दिश मंझार वर क्षेत्र सु ऐरावत निहार॥ जहां छहों कालकी फिरन होय, पहिले सो तिनमें भूमभोय। जब चौथा काल लगै सु आय, तब कर्मभूम वरतै सु भाय॥ जब तीर्थंकरको जन्म होय, शत इन्द्र महोत्सव करें सोय। सज ऐरावत जोजनसु लाख, शतवदनवदन वसुदंत भाख॥ प्रतिदन्त सरोवर सजल थान,शत वीस पांच कमलनवखान। कमलनपरकमल पचीससार,शतआठ अधिकदलअतिउदार॥ दल दलें अपछरा न. सात, सब वीस कोड और कोड़िसात। सौधर्म इन्द्र तापर सुआय, जिन गोद लियेगिर शिखर जाय॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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