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________________ __ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [273 जब वरतै चौथो काल आय, तब कर्मभूम विध रही छाय। जै तीर्थंकर जब जन्म लेय, जै मात तात बहु दान देय॥ सब पुन्य पुरुष उपजै विशेष, चक्री बलहर प्रतिहर नरेश। तहां विजयारधगिरि परो आय,धुति श्वेत वरन मन हरन गाय॥ जैतापर जिनमंदिर अनूप सब समोसरण रचना स्वरुप। जै श्री जिनबिंब विराजमान, सतआठ अधिक प्रतिमा प्रमान॥ जै सुर विद्याधर जजत आय, जै नृत्य करत बाजे बजाय। जै भक्त लीन दर्शन निहार, यह अरज करत प्रभु हमैं तार॥ घत्ता-दोहा श्री जिन महिमा अगम है, को कवि वरनै ताय। देख छवि भगवानकी, लाल सु बल बल जाय॥२०॥ इति जयमाला। __ अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः। इति श्री विद्युन्माली मेरुके दक्षिण दिश भरत क्षेत्र संबंधी रुपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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