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________________ 270] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान =================== __अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मनलाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ // इति आशीर्वादः॥ इति श्री विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी षोड़श विजयार्ध पर ___सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ विद्युन्माली मेरुके दक्षिण भरतक्षेत्र संबंधी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 51 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द / विद्युन्माली मेरु पञ्चमो, ताकी दक्षिण दिशा निहार। भरतक्षेत्र सुन्दर तहां राजै छहों कालकी फिरन विचार॥ गिरि विजयारधपर जिनमंदिर, सुर खेचर पूजत सुखकार। शक्तिहीन हम जिनधर पूजत, कर आह्वानन उरमें धार॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके दक्षिणदिश भरतक्षेत्र संबंधी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं स्थापनं। अथाष्टकं-कुसुमलता छन्द श्वेतवरण उज्वल जल सीयर, चन्द्रकला सम लेकर मांहि। परम पूज्य सर्वज्ञ जिनेश्वर, तिनके चरणन पूजत जाहि॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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