________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [257 SNNNNNNNNNNNNNNNNNNN अथ विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी षोडश विजयार्धपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 49 अथ स्थापना-चाल छन्द विद्युन्माली गिर जानो, दिश पूरव परम प्रमानो। षोडश रूपाचल राजें जिन मंदिर तहां बिराजै॥ सुर विद्याधर तहां आवें पूजा कर पुन्य बढ़ावैं। हम शक्तिहीन हैं भाई पूजो निज घर जिनराई॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी षोडश रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अब मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं, स्थापनं। ___ अथाष्टकं-अडिल्ल छन्द क्षीरोदधि सम उज्वल जल ले चावसों। पूजत श्री जिन चरन सु सुन्दर भावसों॥ विद्युन्गिर पूरव दिश रुपाचल जहां। षोड़श मंदिर मांहि सु जिन पूजो तहां // 3 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पूरव विदेह संबंधी कक्षा // 1 // सुकक्षा // 2 // महाकक्षा // 3 // कक्षकावती // 4 // आवर्ता // 5 // मंगलावती // 6 // पुष्कला // 7 // पुष्कलावती॥८॥ वक्षा॥९॥ सुवक्षा // 10 // महावक्षा // 11 // वत्सकावती // 12 // रम्या // 13 // सुरम्या॥१४॥ रमणी॥१५॥ मंगलावतीदेश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ जलं॥