SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 252
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [243. == == = = = = == == = == = जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं स्थापन। अथाष्टकं-चाल छंद सुकारन पूजत है,भवि श्रीजिनवरजीके पायसुकारनपूजत हैं।टेक। सरस मन मनोहर उजल जल ले, रतन कटोरी भरकै। जन्म जरा दुख दूर करनको,श्रीजिन सन्मुख धरकै॥सुकारन. विद्युन्माली गिर उत्तर दिश, अर दक्षिण दिश सोहै। जम्बू शालमली शाखापर, जिनमंदिर मन मोहै।।सुकारन.॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके उत्तर दिश ईशानकोन संबंधी जम्बूवृक्ष // 1 // नैऋत्य कौन संबंधी शाल्मली वृक्षकी पूर्व शाखापर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ जलं॥ मलयागिर चंदन अरु केशर, घस कर्पूर मिलावो। भव आताप निवारण करन, श्री जिन चरण चढ़ावो॥ सुकारन. विद्युन्माली. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥ मुक्ताफल सम उज्वल अक्षत, मलमल धोय धरीजे। श्री जिन सन्मुख हाथ जोड़कर, पुंज मनोहर दीजे॥ सुकारन. विद्युन्माली. 4 // ॐ ह्रीं. ॥अक्षतं॥ कमल केतकी जुही चमेली, श्री गुलाब सुखदाई। श्री जिनचरण चढ़ावत भविजन, परम महा सुख पाई॥ सुकारन. विद्युन्माली. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // फेनी घेवर मोदक खाजे, ताजे, तुरत बनावो। क्षुधा विनाशक रुचि परकाशक, श्रीजिनचरण चढ़ावो॥ सुकारन. विद्युन्माली. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy