SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 238] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान 2888888888888=== जै जै जै जै ध्वन रही पूर, जगतारन जिनवरके हजूर / निज थान गये खेचर सुदेव, भविलाल चरनकी करत सेव॥ घत्ता-दोहा-विद्युन्माली मेरू पर, हैं षोडश जिनधाम। पूजा सरस सुहावनी वांचै भवि तज काम॥३८॥ इति जयमाल। __ अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुर नर पद ले शिवपुर जाय॥ इति इत्याशीर्वादः इति श्री विद्युन्माली मेरुके चारों दिश चार वन संबंधी सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ विद्युन्माली मेरुके चारों विदिशा मध्ये चार गजदन्त पर __ सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 45 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द विद्युन्माली मेरु पांचमो ताकी विदिशामें पहचान। कंचन वरन रतनमई सुन्दर, कहे चार गजदंत वखान॥ तिनपर श्री जिनभवन अनूपम तहां विराजैं श्री भगवान। तिनकी आह्वानन विध करके, हम पूजत हैं अति सुखमान॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके चारों विदिशा मध्ये चार गजदंत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy