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________________ 234] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ====== ============= अथ प्रत्येकाघ - अडिल्ल छन्द विद्युन्माली मेरू तनी पूरव जहां, भद्रशाल वन भूप है जिनमंदिर तहाँ। सुर खग पूजन जांहि सुमनके चाव सों, हम पूजत जिनचरन अर्घ धर भाव सों॥११॥ ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके भद्रशालवन संबंधी पूर्वदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ दक्षिण दिश सु विशाल मेरु पंचम तनी, भद्रशाल वन सघन सरस उपजावनी। तहां जिनभवन निहार जजत सुरजायकै। हम पूजत जिनचरन सु अरघ चढ़ायकैं // 12 // ____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके भद्रशालवन संबंधी दक्षिणदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 2 // अर्थ // विद्युन्माली मेरु दिशा पश्चिम मनो। भद्रशाल वन बीच भवन जिनवर तनो॥ विद्याधर सुर जजत दरव वसु लायके / हम पूजत ले अर्घ सु मन हरषायके // 13 // ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके भद्रशालवन संबंधी पश्चिमदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // विद्युन्माली मेरु उत्तर दिश भावनो। भद्रशाल वन भूप सरस सुहावनो॥ जिनमंदिर सुर जाय जजत वसु दर्व ले। हम पूजत जिनराय आठ विध दर्व ले // 14 // ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके भद्रशालवन संबंधी उत्तरदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ //
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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