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________________ 194] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान NNNNNNNNNNNNNNNNNNNN अथ प्रत्येकाघ - दोहा मंदिर गिरतें जानिये, उत्तर कौन ईशान। जम्बू तरुपर जिनभवन, अर्घ जजों धर ध्यान॥११॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके उत्तर दिश ईशान कौन सम्बन्धी जम्बूवृक्षकी पूर्व शाखापर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // मंदिर गिर दक्षिण दिशा, नैऋत्य कौन विशाल। शाल्मली द्रुमपर जजों श्री जिनभवन रिशाल॥१२॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके दक्षिण दिश नैऋत्यकौन सम्बन्धी शालमली वृक्षकी पूर्व शाखापर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ जम्बू शाल्मली तनी शाखा सरस विशाल। श्री जिनमंदिर पूजकै अब वरनूं जयमाल // 13 // पद्धडी छन्द जयमाला जै जै श्री मंदिरमेरु जान, जै कंचनमई सुन्दर महान। जै ताकी उपर दिश ईशान, तहां जंबूवृक्ष कहो पुरान॥ जै दूजो दक्षिण दिश निहार, नैऋत्य कौन सोहै सिंगार। जै शाल्मली तरु तहां सार, चहुँदिश चारों शाखा मंझार॥ जै पूरवकी शाखा रिशाल, तापर जिनमंदिर हैं विशाल। कंचनमई रत्न लगे अमोल, जै स्वयं सिद्ध रचना अडोल॥ तिनमें श्री जिनवर बिंब जान जै सुरपति पूजत भक्ति ठान। हम पूजत जिनगृह प्रीत लाय, जिनराज दरश देखत अघाय॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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