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________________ 180] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान = == ==== = चौपाई धातुकी उत्तर दिश जानिये, मेरू इक्ष्वाकार वखानिये। तासु सिखर श्रीजिनधाम जू, अरघ जजत तज सबकाम जू॥ ___ॐ ह्रीं धातुकी द्वीप मध्ये विजय अचलमेरुके उत्तरदिश दोनों ऐरावत क्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // अथ जयमाल - दोहा दीप घातकीमें कही, उत्तर दिशा विशाल। इक्ष्वागिरिपर जिनभवन सुन तिनकी जयमाल // 12 // ___ पद्धडी छन्द जे दोप घातकी है अभंग, गिरि विजय अचल सोहै उतंग। जै गिरिकी उत्तरदिश निहार, ऐरावत क्षेत्र व अपार॥ जै दोनों ऐरावत सु बीच, जै इक्ष्वाकार पडो नगीच। जै गिर ऊपर जिनवर सुधाम, सब समोसरण रचनाभिराम॥ जै वेदी कटनी तीन उक्त, सिंहासन सोहै कमल युक्त। जै तीन छत्र सोहैं विख्यात, भामण्डल भव देखे जु सात॥ जै वृक्ष अशोक जु लहलहाय, सुर पुष्टवृष्टि नमसों कराय। जै दुन्दुभि बाजे बजै जोर, अनहद साढेबारह करोर // सिर चमर जु ढोरत असर आय, सब देव वृन्द जै जै कराय। इस प्रातिहार्य सोहैं विचित्र, सब मंगल दर्व धरे पवित्र॥ तहां श्रीजिनबिंब विराजमान, सतआठ अधिक प्रतिमा प्रमान। सुर विद्याधरके इस आय, जिनराज चरण पूजत बनाय॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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