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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ================== दोहा-नन्दीश्वर बावन गनो, मानुषोत्रके चार। कुण्डलगिर और रुचिकगिरि, चार चार उर धार॥१०॥ एक एक मंदिर विषै, ध्वजा सु गिनिये एक। रत्नदण्डकर सोहनी, धरै अनादि सुटेक॥६१॥ __ अथ अकृत्रिम जिनमंदिर वर्णन (कुसुमलता छन्द) केवलज्ञानी श्री जिनवरने द्वादश वानी कही सु भाय, श्री जिनमंदिर कहे अकृत्रिम तिनकी गिनती सुन मन लाय। भव्यलोकमें तेरह द्वीप लो कहे चारसैठावन गाय, तहां जाय निरजर निरजरनी पूजत श्री जिनवरके पाय॥ श्री जिनमंदिर कहें अकृत्रिम समोशरण रचना सब ठौर, बिम्ब एकसौआठ अनूपम इक इक मंदिरमैं नहि और। धरै पाचसैं धनुष ऊंचाई धारै तीन क्षत्र सिरमौर, इन्द्रादिक तहां पूजन आवे, यज्ञ गदा ले ठाड़े पौर॥ __अथ एकसौ इन्द्र तिनके नाम (कुसुमलता छन्द) भवनपती चालीस बताए, बीस प्रतेन्द्र इन्द्र फुनि बीस, विंतर देवतने जिन भाषे, सरस विभूति धरे बत्तीस। कहे कल्पवासी, सुखरासी, परम महासुन्दर चौबीस, दोय जोतषी दो नर पशुके, सब जिनवरको नावत सीस॥ अथ कितने इन्द्र कहां कहा गमन कर यह वर्णन (कुसुमलता छन्द) जहां जहां जिन भवन विराजत तहां सुर सुरपति पूजन जाय, दीप अढाईमें सब मिलकर नर तिरयंच जजै जिनराय।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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