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________________ 170] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान MereranaareerNareranvrreranarary अथ प्रत्येकाघ-मदअवलिप्तकपोल छंद दक्षिण अचलमेरुके शोभे, तप्त हेमद्युति निषध सु नाम। द्रह तिगंछ बीच कमल अनूपम, तापर धृति देवीको धाम॥ पर्वत शिखरकूट नव पंकत, तिस बीच सिद्धकूट अभिराम। तहां जिनभवन निहार धार उर, अर्घ जजत तजके सबकाम। ॐ ह्रीं अचलमेरुके दक्षिण दिश निषध पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 1 // अर्घ // दक्षिण अचलमेरुते गिनये स्वेत महा हिमवत गिर नाम। महापद्म द्रह द्रह बीच पंकज, जल बिच ही देवीको धाम॥ आठ कूट गिरशिखर विराजत,तिसबिच सिद्धकूट अभिराम। तहां जिनभवन निहार धार उर, अर्घ जजत तजके सबकाम॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके दक्षिण दिश महाहिमवन पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदियो॥२॥ अर्धं // दक्षिण अचलमेरुके सो है, कनकवरण हिमवन गिर नाम। पद्मद्रह बीच कमल हैं, अंबुज बिच श्री देवी धाम // गिरके शिखर कूट एकादस, सिद्धकूट तिस बीच सु ठाम। तहां जिनभवन निहार धार उर, अर्घ जजत तजके सबकाम॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके दक्षिण दिश हिमवन पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // उत्तर अचलमेरुतें कहिए, वेडूरजवत नील सु नाम। द्रह के सरी कमलकी पंकत, कीर्ति देवीको धाम //
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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