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________________ 148] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान NarararSKSEKSararararakaraharana अथ अचल मेरुके पूरव विदेह संबंधी षोडश रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 27 अथ स्थापना-चौपाई पूरव अचलमेरु तैं कहिये, रूपाचल षोड़श तहां लहिये। तिन ऊपर मंदिर जिनजीके, आह्वानन कर पूजत नीके। ___ॐ ह्रीं अचलमेरुक पूरव विदेह सम्बन्धी षोडश विजयार्द्ध पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं। स्थापनं। अथाष्टकं चाल-जोगीरासा परम मनोहर उज्वल जल ले, श्रीजिन सनमुख जावो। पूज जिनेश्वरके पद पंकज, आनन्द मंगल गावो॥ अचलमेरुके पूरव षोडश, रूपाचल गिरि सोहै। तहां षोडश जिन भवन सु पूजो, जगजीवन मन मोहै। ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव विदेह संबंधी कक्षा // 1 // सुकक्षा // 2 // महाकक्षा॥३॥ कक्षकावती॥४॥ आवर्ता // 5 // मंगलावती॥६॥ पुष्कला // 7 // पुष्कलावती // 8 // वक्षा॥९॥ सुवक्षा // 10 // महावक्षा // 11 // वत्सकावती // 12 // रम्य // 13 // सुरम्या॥१४॥ रमणी॥१५॥ मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ जलं॥ मलयागिर करपूर मिलाकर, केसर रंग बनावो। रत्न कटोरीमें सो धरके, श्री जिनचरण चढ़ावो॥ अचलमेरु. // 3 // ॐ ह्रीं॥ चंदनं॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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