________________ 142] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ================= जै सूर प्रभु जिनगुण विशेष, जै विशालकीर्त वन्दत सुरेश जै सुर खग मुनि गावत सुरेश, मुखपाठ पढ़े जयजय जिनेश / जय जिनवाणी ध्वनि खिरै सार, भवि जीव सुनैं आनंद अपा / केइ जीव धरै चारित्र भार, केइ श्रावक व्रत पालें विचार॥ केइ सहैं परिषह वीस होय, केइ केवल लह सिह-कंथ होय। केइ सम्यक्ज्ञान करैप्रकाश,निज आतमरसअनुभव विलास॥ यह अतिशय श्री जिनराज देव, शत इन्द्रचरणकी करत सेव। जहां चौथो काल रहै सदीव, तहां कर्मभूम जानो सु जीव॥ तहां गिर वक्षार सु आठ जान, तिनपर जिनमंदिर हैं महान। श्री सिद्धकूट हैं नाम सार, वरणत सुरगुरु पावैं न पार॥ जै सिंहासन पर कमल जान, तापर जिनबिंब विराजमान॥ वसु मंगल द्रव्य धरै विचित्र, सब प्रातिहार्य सोहै पवित्र। जै इंद्र सकल पूजत सु पाय, सुर नृत्य करत बाजे बजाय॥ खेचर खेचरनी सबै धाय, नित नित कौतूहल करत आय। हम करत विनती शीश नाय, जयवंत होहु प्रभु तुम सु गाय॥ घत्ता-दोहा-अचलमेरु पूरव दिशा, गिर वक्षार सु आठ। तिनकी यह जयमाल है कीजै निशदिन पाठ॥ इति जयमाल। अथाशीर्वाद कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सकै बनाय॥