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________________ 132] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान 1888888888888==== अचल दिशा नैऋत्य, विद्युतप्रभ गजदन्त है। श्री जिन भवन विचित्र अर्घ जजों वसु दर्व ले॥१२॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके नैऋत्यदिश विद्युतप्रभ नाम गजदन्तपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ // अचल पवन दिश सार, मालवान गजदंत हैं। श्री जिनभवन विचित्र, अर्घ जजों वसु दर्व लै॥१३॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके नैऋत्यदिश विद्युतप्रभ नाम गजदन्तपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 3 // अर्घ॥ अचल पवन दिश सार, मालवान गजदन्त है। श्री जिनभवन निहार, मन वच तन पूजों सदा // 14 // ॐ ह्रीं अचलमेरुके वायव्य दिश मालवान नाम गजदन्तपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // गंधमादन गजदन्त, अचल दिशा ईशानमें / जिनमंदिर शोभन्त, आठ द्रव्य पूजा करो // 15 // __ॐ ह्रीं अचलमेरुके ईशान दिश गंधमादन नाम गजदन्तपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 5 // अर्घ॥ अथ जयमाला - दोहा अचलमेरुतें जानिये, विदिशा मांहि विशाल। गजदन्तन पर जिन भवन, तिनकी सुन जयमाल // 16 // पद्धडी जै अचलमेरु सोहै उदार, ताकी चारों विदिशा निहार। तहां नागदन्त सुन्दर सुहाय, गिर नील निषध सो लगे जाय॥ तिनके ऊपर जिन भवन सार, सब समोसरण रचना अपार। वेदी तसु मध्य विराजमान, कटनी तिनों सोहैं महान॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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