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________________ 130] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान SarvarNarersSINrwarsharirarary घत्ता-दोहा-अचलमेरुपर जिनभवन, षोड़स बने विशाल। सुर खेचर पूजत चरन, लाल नवावत भाल॥ इति जयमाला __ अथाशीर्वाद कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढे अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः। इति श्री अचलमेरु सम्बन्धी षोडश जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम् / अथ अचल मेरुके चार विदिशा मध्ये चार गजदन्तपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 23 अथ स्थापना-जोगीरासा अचलमेरु गजदन्त सु चारों, विदिशा मांहि बताए। तिनपर श्रीजिन भवन अनूपम बने सरस मन भाए॥ रत्नमई सुन्दर छबि सोहत, परम सुखदाई। पूजा करत जहां सुर खग मिल, हम पूजत यहां भाई // 1 // ____ॐ ह्रीं अचलमेरुके चारों विदिशा मध्ये चार गजदन्तपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणम् स्थापनं / अथाष्टकं - सुन्दरी छन्द द्रह सुपद्म तनो जल लाइये, जिन सु चरनन पूजन जाइये। अचलमेरु तने गजदन्त जू, तहां जिनेश्वर पूजत संत जू॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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