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________________ 128] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान KarahararashNrNESSKINNNNNNNN अडिल्ल अचलमेरु की पूरव दिशा सु जानिये। तहां पांडुक वन सार सरस उर आनिये // तहां जिन भवन विशाल अमर खगनितरमैं। वसुविध अर्घ चढाय गाय गुण हम नमैं // 23 // __ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पांडुक वन सम्बन्धी पूर्व दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ॥ अचलमेरु सुन्दर दक्षिण दिश मन हरैं। पांडुक वन जिनभवन अमर जै जै करैं / वसुविध दर्व मिलाय अर्घ ले पूजिये। नर सुरके सुख भोग सु निरमय हूजिये // 24 // ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पांडुक वन सम्बन्धी दक्षिण दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ॥ अचलमेरुकी पश्चिम दिश शुभ लेखिये। पांडुकवन मन हरण सरल तहां देखिये॥ सिद्धकूट जिनभवन परम सुविशाल जू। जलफल अर्घ चढ़ाय नमत भवि लाल जू॥२५॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पांडुक वन सम्बन्धी पश्चिम दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ॥ अचलमेरु उत्तर दिश अति रमणीक है। तहां पांडुकवन सरस विराजित ठीक है। जिनमंदिर धर ध्यान, अमर खग नमत हैं। हाथ जोड नय माथ अरघ हम जजत हैं // 26 // ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके पांडुक वन सम्बन्धी उत्तर दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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