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________________ 1922] 122] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान == = ========= ===== अथ जयमाला - दोहा विजयमेरु कुल गिर कहै, श्री जिनभवन विशाल। तिन प्रति सीस नवायके, अब वरणूं जयमाल // 20 // पद्धरि छन्द जै द्वीप धातुकी है उदार, ताको पूरव दिश कही सार। जै विजयमेरु सोहै उतंग जोजन चौरासी सहस अंग॥ जै ताकी दक्षिण दिश पवित्र,तहां कुलगिर तीन कहैं विचित्र। "है पहिलो नाम निषध सु जान, दूजो महाहिमवन है प्रधान॥ जैतीजो हिमवन गिर विशाल, तिसपर जिनमंदिर है रिशाल। अब उत्तरदिश वरनूं सु तीन, गिर नील नाम पहिली प्रवीन। दूजो गिररुक्म सुजगमगाय,तीजो गिर सिखरन अति सुहाय। येही षट्कुलगिर हैं प्रसिद्ध,बहुरचित खचितद्युति स्वयंसिद्ध॥ तिनपर द्रह सुन्दर सजल थान,तिस बीच कमल पंकज महान। तिनपर कुलदेवीके अवास,बहु रत्नजड़ित सुन्दर सुवास॥ गिर सिद्धकूट पंकति अपार, श्री सिद्धकूट तिनमें सिंगार। तहां श्रीजिनमंदिर शोभमान,सत आठ अधिक प्रतिमा प्रमान॥ जहां मंगल द्रव्य धेरै बनाय, वसु प्रातिहार्य छबि रही छाय। सबसमवसरणविधकहीसोय, देखतभविसम्यक्दरशहोय॥ जै सुरखग मिल पूर्णं सदीव, जिन भक्ति हिये धारै सुजीव। नाचैं गा दे दे सुताल, झुक झुक जिनमुख देखें संभाल॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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