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________________ 120] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान សធផល विजयमेरुके दक्षिणदिश सोहै, सुवरणद्युति हिमवन गिरनाम। पद्म द्रह द्रह बीच कमल है, कमल बीच श्रीदेवी धाम॥ ता गिर शिखरकूट एकादश, सिद्धकूट सोहै तिह ठान। तहां जिन भवन निहार धार उर, अर्घ चढाय करत परणाम॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके दक्षिण दिश हिमवन पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // विजयमेरुके उत्तर दिशमें, वडूरज द्युति नील सु नाम। द्रह केसरी जलज पंकतिजुत, तहां कीर्तदेवीको धाम॥ गिरिके शिखरकूट नव सोहैं, तिहबीच सिद्धकूट अभिराम। तहां जिनभवन निहार धार उर, अर्घ चढ़ाय करत परणाम॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके उत्तर दिश नील पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ विजयमेरु उत्तर दिश सोहै, रजित रुक्मगिरि पर्वत नाम। द्रह महा पुण्डरीक पंकज जुत, तापर बुधदेवीको धाम॥ तहां गिरि शिखरकूट वसु उन्नत, ताबीच सिद्धकूट अभिराम। तहां जिनभवन निहार धार उर, अर्घ चढ़ाय करत परणाम॥ ____ॐ ह्रीं विजयमेरुके उत्तर दिश रुक्म पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 5 // अर्घ // विजयमेरुके उत्तर दिशमें, कनकवरण शिखरगिरी नाम। पुंडरीक द्रह द्रह बीच नीरज, तहां लक्ष्मीदेवीको धाम॥ तिहगिर शिखरकूट एकादश, तिह बीच सिद्धकूट अभिराम। तहां जिनभवन निहार धार उर, अर्घ चढाय करत परणाम। ॐ ह्रीं विजयमेरुके उत्तरदिश सिखरिन पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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