________________ 118] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान उज्वल जल प्रासुक ले नीको, कंचन झारी भरीये। पूजत श्री जिनराज प्रभूको, जनम जरा दुख हरिये॥ विजयमेरुके दक्षिण उत्तर, षट्कुल गिरपर सोहै। तहां जिनभवन अकीर्तम सुन्दर, सुरनर के मन मोहै॥२॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके दक्षिण दिश निषध॥१॥ महाहिमवन // 2 // हिमवन // 3 // उत्तरदिश नील // 4 // रुक्म // 5 // सिखरन पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ जलं॥ मलयागिर करपूर सु चन्दन, केसर रंग सु नीकों। भव आताप निवारन कारन, पूजत जिनवरजीको॥ 'विजयमेरु.॥३॥ ॐ ह्रीं. // चंदनं // देवजीर सुखदास सु अक्षत, उज्वल धोय सु लीजे। मन वच काय लाय जिन चरणन, पुञ्ज मनोहर दीजे॥ विजयमेरु.॥४॥ ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ नानाविधके फूल सुवासित, सुर तरुके ले आवो। पूजो श्री जिनराज प्रभुको, हरष हरष गुण गावो॥ विजयमेरु. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // बहु विधके पकवान मनोहर, ले जिनपूजा करिये। क्षुधा रोगके नाश करनको, प्रभु सन्मुख ले धरिये॥ विजयमेरु.॥६॥ ॐ ह्रीं. // नैवेद्यं॥ जगमग जगमग होत दिवाली, दीप अमोलक लावो। मोह तिमिर नाशक जिनवरपद, आरति कर हरषावो॥ विजयमेरु.॥७॥ ॐ ह्रीं. // दीपं॥