SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [111 SarSNASESSISTANTSPSSSwar दस विध धूप सुरंगी चंगी, अगनीको सु पचावो। खेवो धूप जिनेश्वर आज, वसु विध कर्म जलावो॥प्रभु.॥ विजयमेरु.॥८॥ ॐ ह्रीं.॥धूपं॥ श्रीफल लौंग सुपारी पिस्ता, नैननको सुखकारी। श्रीजिन चरण चढावत भविजन,शिवपद पावत भारी।प्रभु.॥ विजयमेरु.॥९॥ ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल फल अर्घ चढ़ाय गाय गुण, नाचत दे दे तारी। नरभव पाय जिनेश्वर पूजै, लाल सदा बलिहारी ।प्रिभु.॥ विजयमेरु.॥१०॥ ॐ ह्रीं. // अर्घ / अथ प्रत्येकार्घ - कुसुमलता छन्द विजयमेरुके दक्षिण सोहैं, भरतक्षेत्र सुन्दर अभिराम। ताके मध्य पडो रूपाचल, श्वेत वरण मुनिजन विश्राम // तहां श्री सिद्धकूट जिनमंदिर, श्री जिनबिंब अकीर्तम धाम। तिनके चरणकमल हम वसुविध,अर्घ चढ़ाय जजै निज ठाम॥ __ॐ ह्रीं विजयमेरुके दक्षिण दिश भरतक्षेत्र संबंधी संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ अथ जयमाला - दोहा विजयमेरु दक्षिण दिशा, भरतक्षेत्र सु विशाल। रूपाचलपर जिन भवन, पूजत सुर नर लाल // 12 // पद्धडी छन्द जै द्वीप धातुकी परम वेश, तहां दोय मेरु भाषे जिनेश। पूरव दिश मेरूविजय महान, पश्चिम दिश दूजो अचल जान॥ जै दोऊ मेरु महा उतंग, जोजन चौरासी सहस अंग। जै पूरव विजय सुमेरु सार, ताकी दक्षिण दिशमें निहार॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy