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________________ 96 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान = == = ===== ===== तिनपर जिनमंदिर हैं महान, सब समोसरण वरणन समान। जै वेदी मध्य विराजमान, सिंहासन हेमवरण वखान॥ जै सिंहासनपर कमल सार, बहू रत्नजडित नैनन निहार। तहां श्रीजिनके प्रतिबिंब देख,अति हर्ष किये सुरपति विशेख॥ भामंडलकी छबि रही छाय, भव सात दरश देखत जिनाय। जै तीन छत्र सिरपर फिराय, जैचमर सु चौसठ दुरत जाय॥ जै दुंदुभि शब्द बजैं आकाश, जै कल्पवृक्ष सुन्दर सुवास। जै पुष्पवृष्टि सुर करें लाय, जै सभी जीव जै जै कराय॥ जै वृक्ष अशोक सुलहलहाय, जिनपूजनको भविजन बुलाय। जै चतुर निकाय सु देव आय, खेचर खेचरनी सीस नाय॥ बहु नृत्य करै बाजे बजाय, गुण आठ पढ़ आनंद बढ़ाय। प्रभु तुम गुण वरणन है अपार, वरनत कवि कैसे लहै पार॥ घत्ता-दोहा-विजयमेरु पश्चिम दिशा, आठों गिर सु विशाल। तिनपर जिन गृह पूजक, लाल नवावत भाल॥४०॥ अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणनको कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू सम्पति, बाढे अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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