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________________ 92 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान === =========== ==== ताके पुत्र पौत्र अरु सम्पति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जसपर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः इति श्रीविजयमेरुकी पूरव विदेह सम्बन्धी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम् / अथ विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 16 ___ अथ स्थापना - दोहा विजयमेरू पश्चिम दिशा, कूट आठ वक्षार। तिनपर जिनमंदिर निरख, करो थापना सार॥१॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठर , ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं / स्थापनं। अथाष्टकं-चौपाई क्षीरोदधि उजल जल लीजे, श्रीजिनचरण धार सु दीजे। जन्म जरा दुखनाशन कारन, पूजो जिनवर भवदधि तारन॥ विजयमेरु पश्चिम दिश जानों, गिर वक्षार आठ उर आनों। जा पर जिनमंदिर सुखकारो, तिनके पाइन धोक हमारी॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी शब्दवान॥१॥ विजयवान // 2 // आसीविष॥३॥ सुखावह // 4 // चन्द्र // 5 // सूर्य // 6 // नाग॥७॥ देवनाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ जलं॥
SR No.032847
Book TitleTerah Dwip Puja Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year2000
Total Pages338
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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