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________________ किं वै मृत्युस्तार्ण इवास्य व्याघ्रः] महाभारतस्थ [किं स्वित्प्रेत्य महाफलम् किं वै मृत्युस्तार्ण इवास्य व्याघ्रः 5. 245*.2. किं श्लाघसे दुर्लभा वादसिद्धिः 3. 133.84. किं वैरं तस्य तेन ह 3. 258. 44. किं सत्यं किं च दुष्कृतम् 14.35. 198. किं वै वक्ष्यथ मुख्यगाः 7. 17. 284. किं सत्यं किं तपो विप्र 14. 35.80. किं वै सहैव चरतः 5. 35. 18. किं सत्यं प्रोच्यते राजन् 3. App. 19.5 pr. किं वै सुखतरं ततः 3. App. 21. 27, 324. किं समीक्ष्य बलाबलम् 5. 125.34. किं वो भयं मानुषेभ्यः 1. 189.5%. किं सर्वथा तालुविशोषणेन 8. 1147*. 2. किं वो मुखमनीकानां 8.5. 100%. किं स वक्ष्यति दुर्धर्षः 7. 125. 19. किं वो राजा करिष्यति 9.24.39%. किं स शोचेत्ततः परम् 5. 45. 22d. किं व्रजेदाग्निहोत्रिकः 14. App. 4. 2549 post. किं सहायैः करिष्यसि 2. 432*.2 post. किं शब्दः किं नु किं कृतम् 10.8.73. किं संजय वदस्व मे 10. 6. 14. किं शिष्टमभवदलम् 9.7. 350. किंसंज्ञिको महावृक्षः 12. App. 15. 44 pr. किं शिष्टं स्यात्सायकानां रथे मे 8.54. 14. किंसंनाहाः कथंशस्त्राः 12. 102. 1. किंशीलश्च समाचरेत् 13. 13. 1. किं संवर्तस्तव कर्ताद्य विप्र 14.9.54. किंशीलः किंपराक्रमः 1. 316*. 1 post. किंसंस्थश्च भवेद्दण्डः 12. 121.7". किंशीलः किंसमाचारः 12.81.20%3 222. 103 269. 1". किं सुखं किं च दुष्कृतम् 14. 35.8. किंशीलाः किंसमाचाराः 13. 133.1". किं सुखं चिरजीविनाम् 3. App. 21. 26. किंशीलाः किंसमुत्थानाः 12. 102. 1". किं सुखं पश्यतः शुभे 13. App. 15. 4033 post. किंशीलोऽयं भविष्यति 3.995*. 1 post, किं सुखं भवति प्रिये 13. App. 15. 4035 post. किंशुकः पुष्पवानिव 6. 106. 34. किं सुखानां तथोत्तमम् 3. 297. 52. किंशुकाभानि कानिचित् 13. App. 9A. 48 post. किं सुवर्ण कथं जातं 13. 83.7". किंशुकाभानि तस्य वै 2. App. 21. 904 post. किं सूत तेषां विप्राणां 1. 53. 4". किंशुकाविव चोत्फुल्लौ 7. 143. 18. किं सौम्य नामित्वरसे 12. 136. 86. किंशुकाशोकबकुल- 3. 61. 38%. किं स्थैर्यमृषिमिः प्रोक्तं 3. App. 32. 17 pr. किंशुकैरिव पुष्पितैः 7. 99. 100. किं स्थैर्य मुनिभिः प्रोक्तं 3. App. 19. 25 pr. किं शृणोति ब्रवीति वा 12. 179. 104. किं स्यात्पापप्रणाशनम् 12. 123. 124. किं शेध्वमपराजिताः 3. App. 31. 25 post. किं स्यात्समारभ्यतमं मतं वः 5. 1. 234. किं शेवं पुरुषर्षभाः 3. App. 31. 23 post. किं स्वस्थ इव तिष्ठसि 12. 169. 21". किं शेषं तत्र पश्यसि 3. 106*.2 post. किं स्वं सुकृतदुष्कृतम् 12. 316. 324. किं शेषं तत्र मन्यसे 7. 126. 284. किं स्वं सुकृतदुष्कृते 13. App. 15. 3950 post. किं शेष पर्युपास्महे 7. 126. 4. 9. 3. 14. किं स्विच्छीघ्रतरं वायोः 3. 297. 40deg. किं शेष हि बलस्य मे 4. App. 31. 16 post. किं स्विच्छ्रेयः परंतप 14.35. 34. किं शोचसि महाप्राज्ञ 1. App. 81. 70 pr. किं स्विच्छ्रेयः पितामह 12.260.24. किं शोचसि महाराज 11. 1.6". किं स्विच्छ्रेष्ठतरं भवेत् 13. 6. 14. किं श्रुतं किं परायणम् 14. 92. 10. किं स्विजातं न चोपति 3. 133. 25%; 297. 42. किं श्रेयस्तद्रवीहि मे 12.648*. 1 post. किं स्विकिमिति चाब्रवीत् 12. App. 29E. 383 post . किं श्रेयः का गतिब्रह्मन् 12. 287. 2". किं स्वित्कृत्वा लभते तात लोकान् 1. 85.21". किं श्रेयः परमं ब्रह्मन् 12.277.3". किं स्वित्तयोस्तत्र जयोत्तरं स्यात् 12. 148. 29. किं श्रेयः पुरुषस्य हि 12. 220. 1. किं स्वित्पृथिव्यां ह्येतन्मे 13. App. 14B. 3 pr. किं श्रेयः पुरुषस्येह 13. 151. 1 . किं स्वित्प्रतिष्ठमानानां 3.297.36. किं श्रेयः पुरुषं प्रति 13. 114.1". किं स्वित्प्रवदतां वरम् 3. 297. 360 किं श्रेयः प्रतिपद्येत 12. 169. 1". किं स्वित्प्रवसतो मित्रं 3. 297. 44". किं श्रेयः सर्वभूतानां 12.279.4". किं स्वित्प्रहरणं श्रेष्ठं 12. 160. 5. किं श्रेयो मन्यते भवान् 12. 105. 53". किं स्वित्प्रेत्य महाफलम् 13. 60. 19, -746 -
SR No.032840
Book TitlePatrika Index of Mahabharata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParshuram Lakshman Vaidya
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages808
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue
File Size25 MB
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