SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आमुख श्रीजैन-श्वेताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ-तीर्थ भारत के जैनतीर्थों में अपना एक विशिष्ट स्थान है। इस तीर्थ की बहुप्रायायी गतिविधियों में, ज्ञानक्षेत्र में भी अनेक कार्यक्रम तीर्थ ने अपने हाथ में लिए हैं। प्राकृत भारती के माध्यम से विशिष्ट साहित्य के प्रकाशन में सहयोग दिया जा जा रहा है। सेवा मन्दिर रावटी के माध्यम से प्रागम प्रकाशन का महत्व पूर्ण कार्य हो रहा है। पूर्व में प्रसिद्ध विद्वान् श्री अगरचंद नाहटा द्वारा सम्पादित जैनकथा-संग्रह व विविध तीर्थकल्प का प्रकाशन तीर्थ ने करवाया। पत्राचार पाटयक्रम के अंतर्गत मुनि श्रीगुरगरत्न विजयजी की निश्रा में त्रि-स्तरीय जैन शिक्षण कार्यक्रम चल रहा है। .. भारत के प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता पद्मश्री डा. वाकणकर के तीर्थ पर आगमन पर उन्होंने राजस्थान के जैन पुरातत्व पर शोधकार्य में तीर्थ को नेतत्व प्रदान करने का संकेत किया था व तत्पच्छात इस क्षेत्र में कार्यशील होंने की अोर प्रथम कदम के रूप में तीर्थ ने अपने मूल क्षेत्र बाड़मेर जिले का शिलालेख-सर्वेक्षण का कार्य हाथ में लेने का निश्चय किया एवं तीर्थ के पुस्तकालय प्रभारी श्री हीरालाल जोशी को सर्वेक्षण का कार्य सौंपा। तीर्थ की ज्ञान समिति श्री पारसमल भंसाली, श्री सुल्तानमल जैन श्री चम्पालाल सालेचा, श्री गणपतचन्द पटवारी श्री भूपचन्द जैन के मार्गदर्शन में इस सर्वेक्षण-कार्य को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित करवाया जा रहा है / निश्चित ही यह संकलन जैन-संस्कृति ही नहीं समस्त भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व हेतु एक महत्वपूर्ण संदर्भ ग्रन्थ सिद्ध होगा। श्रीपाश्ववप्रभु जन्मकल्याणक पोष कृष्णा दशमी 2044 वि. 16.12.1987 अध्यक्ष व ट्रस्ट मण्डल श्री जैन इवताम्बर नाकोड़ा पार्श्वनाथ तीर्थ
SR No.032838
Book TitleBadmer Jile ke Prachin Jain Shilalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Nakoda Parshwanath Tirth
PublisherJain Shwetambar Nakoda Parshwanath Tirth
Publication Year1987
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy