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________________ - भारतीय सभ्यता के ध्वंस व विनाशलीला रचने में अलाउद्दीन खिलजी अग्रणी रहा जिसने सिवाना, बाड़मेर, सांचोर व जालोर पर अपनां अातंककारी अभियान चलाया संवत 1360 से 1400 वि. के चालीस वर्षों में ही सिवाना का दुगं. खेड व वीरमपुर के नगर व मदिर ध्वस्त हए, जूना बाहड़मेर किराडू व सांचोर का विनाश हुप्रा व जालौर के कान्हदेव व वीरम को वीरगति प्राप्त होकर वहाँ मुसलमान हाकिम बैठा / इन सभी ध्वस्त मदिरों में कुछ तो नगर व मंदिर सदा के लिए ध्वस्त हो गएं व कुछ का जीर्णोद्धार विक्रम की पूरी पन्द्रहवी सदी में बिखरे रूप में हुआ क्योंकि जालौर क्षेत्र में लगातार पुनः सत्ता प्राप्ति हेतु हिन्दू राजाओं के मुसलमानों से युद्ध होते रहे व इसी काल में कन्नौज से आये राव सीहा व व उनके वंशजों ने पालो व बाड़मेर क्षत्र में अपनी प्रभाव बढाना प्रारम्भ किया। गुजरात में सोलकी सत्ता के शिथिल होते ही गोहिल राजपूतों ने जो सोलकियों के सरदार के रूप में खेड़, महेवा-क्षेत्र में अवस्थित थे खेड़, पर अपना राज्य स्थापित कर दिया। कहावत है कि "पोल देख ने गोहिला घसोया' पर शीघ्र ही राव प्रांसथान ने खेड़ पर कब्जा कर लिया व राठौड़ों का प्रभाव सिवाना व आसपास के क्षेत्रों पर बढने लगा / राठौड़ों के काल में जैन-सस्कृति को पर्याप्त संरक्षण मिला व प्रोसवालों के मोहनोत व छाजेड़ गौत्रों की इन्हीं राठौड़-परम्परा से उत्पत्ति हई है / राठौड़ राजवंशों पर भी जैन-प्रभाव था, ऐसा उल्लेख मिलता है कि तपागच्छ के एक साधजी ने मोहनगी को मोहनोत बनाया। उनका गच्छ तपागच्छ था पर राठौड़ों का गच्छ खरतर था / इस क्षेत्र की अनेक प्रतिमानों व मंदिरों के शिलालेखों पर राठौड़ राजामों के उल्लेख मिलते हैं। बाड़मेर के इतिहास में मल्लिनाथ वीरम व जगमाल के समय में माढ के नवाब व दिल्ली के तुगलक सम्राटों की सम्मिलित फौजों से युद्ध की घटना अपना ऐतिहासिक महत्व रखती हैं / मल्लिनाथ का काल संवत् 1430-56 के करीब रहा है। इस काल में महेवा क्षेत्र प्रशांत रहा व इस क्षेत्र में इस काल के शिलालेखों का अभाव है। इस युद्ध में राठौड़ों ने फिरोजशाह तुगलक वा माढू के मोहम्मद एबक पर विजय प्राप्त की। .., विक्रम की सोलहवीं शताब्दी अर्थात् संवत् 1500-1600 तक की काल इस क्षेत्र में राजनैतिक शान्ति का काल रहा / इसी काल में अनेक
SR No.032838
Book TitleBadmer Jile ke Prachin Jain Shilalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Nakoda Parshwanath Tirth
PublisherJain Shwetambar Nakoda Parshwanath Tirth
Publication Year1987
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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