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________________ [ 56 ] सारथी के वचन पर ही जन्म से पापकार्यों से पराङ्गमुख श्री नेमिनाथ भगवान को संहारक लीला के साथ जोड़ने का साहस कर सके हैं। प्राचार्य यहाँ यह क्यों भूल जाते हैं कि तीर्थंकर परमात्मा का चारित्र तद्भव में सर्वथा निर्दोष ही होता है / ऐसी भ्रामक बात लिखने वालों से जैन समाज को सावधान रहना चाहिए और विशेषकर दयाधर्मी समाज को, क्योंकि तीथंकर श्री नेमिनाथ भगवान के उज्ज्वल चरित्र को कलंकित करने की प्राचार्य हस्तीमलजी की यह गहणिय चेष्टा है। यद्यपि चौबीस तीर्थंकरों में सोलहवें शांतिनाथजी, सत्रहवें कुंथुनाथजी, एवं अठारवें भरनाथजी षट्खंड पृथ्वी के साधक चक्रवर्ती राजा हुए हैं / किन्तु इन पुण्यात्माओं को बिना शस्त्र उठाये ही षखंड भूमि प्राप्त हो जाती है, क्योंकि तीर्थकर पुण्यलक्ष्मी उनके चरण चूमती है। ऐसा ही पुण्य प्राग्मार श्री पावकुमार का था। उनके युद्धभूमि में जाने के साथ ही उस मातलि सारथी सहित देवोंद्वारा पूजे गये पाश्वंकुमार को देखकर यवनराजा प्रभु के चरणों में आ गया था। ऐसा ही पुण्य प्रकर्ण श्री नेमिनाथजी का था, ऐसा प्राचार्य को स्वीकार करना चाहिए। जिसके हृदय में सूत्राभ्यास द्वारा सद्बोधक प्रार्दुभाव हुआ है, उसके हृदय में ही आगमसूत्र की तात्त्विक स्पर्शना होती है। -ग्यायदिशारद पूज्य यशोविजयजी उपाध्याय
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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