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________________ [ 52 ] होकर उसने तलवार निकाली, तब जान खतरे में जानकर पुरोहित ने बताया कि-"सुख चैन से यज्ञ हो रहा है और तुम फूल फल रहे हो, इसका कारण यज्ञ स्तम्भ के नीचे रही श्री शांतिनाथ भगवान की प्रभावशाली प्रतिमा है।" शय्यंभव ने यूप ( यज्ञ स्तम्भ ) को तत्काल उखाड़कर प्रशांतमुद्रायुक्त श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा निकाली। ___ बाद में प्रार्य श्री प्रभवस्वामी के पास जाकर बाह्यात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा का तत्त्व पाकर अपनी सगर्भा स्त्री को छोड़कर उसने चारित्र लिया। उक्त यथार्थ कथानक के तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर खंड 2, पृ० 314 पर प्राचार्य हस्तीमलजी लिखते हैं कि 446 उपाध्याय ने काल के समान करवाल लिये अपने यजमान ( शय्यंभव ब्राह्मण ) को सम्मुख देखकर सोचा कि अब सच्ची बात बताये बिना प्राणरक्षा असंभव है। यह विचार कर उसने कहा-"अर्हत भगवान द्वारा प्ररूपित धर्म ही वास्तविक तत्त्व और सही धर्म है ( ! ? )" इसका सही उपदेश यहाँ विराजित आचार्य प्रभव से तुम्हें प्राप्त करना चाहिए।xxx मीमांसा-श्री दशवकालिक सूत्र के कर्ता श्री शय्यंभवसूरि श्री शांतिनाथजी की प्रतिमा को देखकर प्रतिबोधित हुए थे, ऐसा श्री दशवकालिक नियुक्ति शास्त्र में भी लिखा है, यथा xxx “सिज्जंभवं गणहरं जिणपडिमा दंसरणेण पडिबुद्ध // श्लोक-१४॥XXX यज्ञगोर ने शय्यंभव ब्राह्मण को यज्ञस्तम्भ के नीचे रही श्री शांतिनाथ भगवान को प्रतिमा को तत्त्व बताया था, ऐसा दशवकालिक
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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