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________________ [ 46 ] नगरी जीती नहीं जा सकी / दैवी शक्ति द्वारा कूणिक को ज्ञात हुआ कि वैशाली नगरी में श्री मुनिसुव्रतस्वामी का प्राचीन स्तूप है, जिसके प्रभाव से वैशाली अविजित रही है। अविजित वैशाली नगरी पर विजय पाने के लिये भगवान के स्तूप को तोड़ना आवश्यक था। अतः कूलवालक नाम के मुनि को मागधिका नाम की वेश्या द्वारा चरित्रभ्रष्ट करवाकर नैमित्तिक के रूप में गुप्त रीति से वैशाली में प्रवेश करवाया गया / वर्षों के युद्ध से परेशान जनता ने नैमित्तिक कूलवालक को युद्ध मुक्ति का उपाय पूछा / कूलवालक ने श्री मुनिसुव्रत स्वामी का स्तूप तोड़ देने पर युद्ध समाप्ति बतायी / काफी प्रचार के बाद लोगों ने कूलवालक की बात पर विश्वास कर स्तूप को तोड़ दिया। पूर्व संकेत के अनुसार कूणिक ने पहिले सैनिकों को वैशाली से दूर हटा लिया, किन्तु बाद में वैशाली पर आक्रमण करके इसको जीत लिया। खण्ड 1, पृ० 753 पर प्राचार्य लिखते हैं कि 44 दुश्मन के घेरे से ऊबे हुए नागरिकों ने फूलवालक को नैमित्तिक समझकर बड़ी उत्सुकता से पूछा-विद्वन् ! शत्रु का यह घेरा कब तक हटेगा? कूलवालक ने उपयुक्त अवसर देखकर कहा-"यह स्तूप बड़े अशुभ मुहूर्त में बना है। इसी के कारण नगर के चारों ओर घेरा पड़ा हुआ है। यदि इसे तोड़ दिया जाय तो शत्रु का घेरा हट जायगा। कुछ लोगों ने स्तूप को तोड़ना प्रारम्भ किया। फूलवालक ने कूणिक को संकत से सूचित किया / कूणिक ने अपने सैनिकों को घेरा समाप्ति का आदेश दिया। स्तूप के ईषत् भंग का तत्काल चमत्कार देखकर नागरिक बड़ी संख्या में स्तूप का नामोनिशां तक मिटा देने के लिये टूट पड़े। कुछ ही क्षणों में स्तूप का चिन्ह तक नहीं रहा।
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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