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________________ [ 28 ] XXXउन वज्रमय गोल डब्बों में बहुत जिनकी दाढ़ों स्थाप रखी हैं, वे दाढ़ों सूरियाम देव के, और भी बहुत से देव-देवियों के अर्चन या वन्दन-पर्युपासनीय हैं। 8xx मीमांसा-इतिहासकार प्राचार्य ने उक्त तथ्य को नहीं लिखने में ही अपना श्रेय समझा है, जो अनुचित है। तीर्थंकर भगवान की दाढ़ों वंदनीय एवं पर्युपासनीय है और अस्थियां भी पूजनीय हैं। देव भगवान के शरीर का यत् किंचित् अवयव हाथ लगता है, उनको भी वे पूज्यदृष्टि से पूजकर अपना कल्याण समझते हैं। श्री राजप्रश्नीय सूत्र लिखित तथ्य को छिपा करके प्राचार्य ने अप्रमाणिकता की है। तीर्थंकर परमात्मा की परम पावन आत्मा इस पावन दाढ़ा में भी रही थी इसके कारण यह शान्तरस से ऐसी भावित हो गयी है कि दो देव के बीच लड़ाई हो जाने पर इस पवित्र दाढ़ा के अभिषेक जल को उन पर छिड़कने से वे दोनों देव शान्त हो जाते हैं / अन्य देव भी भगवान की हड्डियों एवं अन्य अर्धजलित अंगों को ले जाते हैं, उनका भी अभिषेक प्रादि करते हैं / तीर्थंकर परमात्मा की भक्ति का यह भी एक प्रकार है ऐसा शास्त्रीय उल्लेख होते हुए भी दाढ़ों के विषय में पर्युपासना तथा वंदन की बात प्राचार्य ने अपने इतिहास में कोशों दूर छोड़ दी है जो सर्वथा अनुचित ही है / ___दुर्लभ मनुष्य जन्म प्राप्त करने के बाद तत्त्वदर्शीको सूत्रोक्तनीति के अनुसार वीतराग भाषित धर्म की आराधना करनी चाहिए। मनमानी कल्पना पर किये हुए धर्म की फूटी कौड़ी की भी कीमत नहीं है / -1444 ग्रन्थ रचयिता पूज्य हरिभद्रसूरिजी महाराज
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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