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________________ [प्रकरण-६ ] श्री ऋषभदेव का निर्वाण प्रौर पावन दाढ़ा तीर्थंकर परमात्मा का निर्वाण होता है तब देव-देवेन्द्र पाते हैं, भगवान के पावन देह को स्नान कराकर चन्दनादि का विलेपन करते हैं / भगवान के देह को चन्दन की चिता पर जलाया जाता है / बाद में भगवान की पावनदाढ़ा देव देवलोक में ले जाते हैं / देव भगवान के शरीर के अवशेषों का आदर एवं पूज्य भाव से सेवा-पर्युपासना करते हैं। प्रष्टापदगिरि पर प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव भगवान का निर्वाण हुमा / इस विषय में प्राचार्य हस्तीमलजी खंड 1, पृ० 131 पर लिखते हैं कि 808 भगवान ऋषभदेव का निर्वाण होते ही सौधर्मेन्द्र शक आदि 64 देवेन्द्रों के आसन चलायमान हुए। वे सब इन्द्र अपने अपने विशाल देव परिवार और अद्भुत् दिव्य ऋद्धि के साथ अष्टापद पर्वत के शिखर पर अम्ये / देवराज शक की आज्ञा से देवों ने तीन चिताओं और तीन शिविकाओं का निर्माण किया। शक ने क्षीरोदक से प्रभु के पार्थिव शरीर को और दूसरे देवों ने मणधरों तथा प्रभु के शेष अन्तेवासियों के शरीरों को क्षीरोदक से स्नान करवाया। उन पर गोशीर्ष चंदनका विलेपन किया।४४४ xxx शक की आज्ञा से अग्निकुमारों ने क्रमशः तीनों चिताओं में अग्नि की विकुर्वणा की और वायुकुमार देवों ने अग्नि को प्रज्वलित किया।४४४
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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