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________________ [ 23 ] उक्त बारह गुणों के विषय में "देवकृत अशोकवृक्ष" न लिखकर और "देवकृत पुष्पवृष्टि" ऐसा लिखने के पीछे प्राचार्य का अभिप्राय यह रहा होगा कि देवों द्वारा भगवान के समवसरण में प्रचित (निर्जीव ) पुष्पों की वृष्टि होती है। जबकि पूर्वाचार्यों ने सचित पुष्पवृष्टि का भी होना शास्त्रों में लिखा है। "तुष्यतु दुर्जन न्यायेन" यह मान भी लिया जाए कि अहिंसा धर्म के प्रवर्तक तीर्थंकर परमात्मा की उपस्थिति में सचित पुष्पों की वृष्टि (वर्षा) न करके देवगण प्रचित पुष्पों की वृष्टि करते थे, जो कि अहिंसक हैं, फिर भी पुष्पवर्षा से वायुकाय की हिंसा तो अवश्य होती ही होगी? इसका जबाब प्राचार्य क्या देंगे? ___ और चंवर ढुलाने आदि में वायुकाय के जीवों की हिंसा भी विचारणीय है। प्राचार्य ने बारह गुणों का वर्णन अपने इतिहास में नहीं किया है / रथ मुसल युद्ध चंद्रगुप्त चाणक्य का कथानक, ब्रह्मदत्त और सुभूम आदि के विषय में फालतू लम्बी चौड़ी बातें लिखने वाले प्राचार्य ने अत्यन्त उपादेय तीर्थंकर परमात्मा के गुणों का वर्णन नहीं किया है यह सखेद आश्चर्य की बात है / इसके साथ एक बात और भी है कि गुण-गुणी में रहते हैं, जैसे कि तीर्थकर परमात्मा में ज्ञान, दर्शन, चारित्रादि गुण रहते हैं / किन्तु सिंहासन, छत्र, चंवर, अशोकवृक्ष जो गुणी में नहीं रहते हैं फिर भी इनको तीर्थंकर परमात्मा (गुणी) के गुण क्यों कहा है ? इस प्रकार के स्पष्टीकरण को अत्यन्त आवश्यकता थी। जिसको अपूर्णता ही अपने इतिहास में प्राचार्य ने रखी है जो उनकी अनभिज्ञता की भी सूचक मानी जाएगी। स्वत: सिद्ध तथ्यों जैसे कि महावीर भगवान का गर्भापहार, भरतचक्री की षट् खंड साधना, ऋषभदेव भगवान का 400 दिन का
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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