SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 14 ] xxxकहा जाता है कि आचार्य नन्दिल ने वैरोट्या के स्तुति परक “नमिऊण जिणं पासं" इस मंत्र गभित स्तोत्र की रचनाकर वैराट्या की स्मृति को चिरस्थायी बनाया।xxx मीमांसा-देव-देवियों की बात स्पष्ट रूप से प्रागम शास्त्रों में कथित है। फिर भी ' कहा जाता है" ऐसा प्राचार्य का लिखना अन्याय ही है। श्री भगवती सूत्र में सूत्रकार महर्षि ने भी यक्ष-यक्षिणियों का लिपिबद्ध मंगल किया है / द्वादशांगी के पांचवें अंग भगवती सूत्र के विषय में प्राचार्य हस्तीमलजी खण्ड-२ पृ० 170 पर लिखते हैं कि 88 द्वादशांगी के पांचवें अंग "व्याख्या प्रज्ञप्ति" [ अपरनाम श्री भगवती सूत्र ] की आदि में "पंचपरमेष्ठी नमस्कार मंत्र", "णमो बंभीए लिवीए" और णमो सुयस्स पद से मंगल किया है और अन्त में संघ स्तुति के पश्चात् गौतमादि गणधरों, भगवती व्याख्या प्रज्ञप्ति, द्वादशांगी रूप गणिपिटक, श्रुतदेवता, प्रवचनदेवी, कुभधर यक्ष, ब्रह्मशांति, वैरोट्यादेवी, विद्यादेवी और अंतहुडी को नमस्कार किया गया है।xxx ___ मीमांसा–यहां स्वयं सूत्रकार महर्षि ने अन्तिम मंगल के रूप में कुम्भधर यक्ष, वैरोट्यादेवी प्रादि को नमस्कार किया है / इतना ठोस आगम वचन होते हुए भी प्राचार्य का पक्षपात देखो कि देव-देवियों के विषय में “ऐसा माना जाता है", "ऐसा कहा जाता है" ऐसे घटिया शब्दों का प्रयोग करके अप्रमाणिकता कर रहे हैं। महान जैनाचार्य श्री नन्दिल के विषय में प्रागमिक तथ्य सत्य होते हुए भी "कहा जाता है" ऐसा प्राचार्य लिखते हैं, जो प्राचार्य के अनिश्चित चित्त का परिचायक है। किन्तु ऐसी अनिश्चितता और अप्रमाणिक बातें तो इस कल्पित इतिहास में जगह जगह लिखी मिलती हैं / खंड-२, पृ० 646 पर प्राचार्य लिखते हैं कि
SR No.032834
Book TitleKalpit Itihas se Savdhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvansundarvijay, Jaysundarvijay, Kapurchand Jain
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year1983
Total Pages222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy